ब्रेस्ट कैंसर की रोकथाम में भारतीय वैज्ञानिकों की नई खोज
राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी तिरुअनंतपुरम और सीएसआइआर-नॉर्थ ईस्ट इस्टीट्यूट (सीएसआइआर-एनईआइएसटी), जोरहाट के शोधकर्ताओं ने एक नया मॉलीक्यूल (अणु) बनाया है, जिसे ब्रेस्ट (स्तन) कैंसर के उपचार में फोटोसेंसिटाइजर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। फोटोसेंसिटाइजर एक मॉलीक्यूल है जो एक फोटोकैमिकल प्रक्रिया में अन्य अणुओं में रासायनिक परिवर्तन लाता है।
फोटोसेंसिटाइजर को फोटोडायनॉमिक थेरेपी के नाम से भी जाना जाता है। फोटोडायनॉमिक थेरेपी एक उभरती हुई उपचार पद्धति है, जिसे पारंपरिक तकनीकों की तुलना में अधिक सुरक्षित माना जाता है। इसमें फोटोसेंसिटाइजर की मदद से प्रकाश की मौजूदगी में कैंसर कोशिकाओं को खत्म किया जा सकता है।
ऑक्सीजन आयन उत्पन्न करते हैं फोटोसेंसिटाइजर-
फोटोसेंसिटाइजर कुछ खास कोशिकाओं में जमा होते हैं। जब इन्हें एक लेजर लाइट के जरिये सक्रिय किया जाता है, तो रसायन अत्यधिक प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन आयन उत्पन्न करते हैं, जिसे रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज कहा जाता है। ये आयन ट्यूमर कोशिकाओं में तनाव पैदा करते हैं, जिससे रासायनिक और जैविक तंत्र के जरिये ट्यूमर स्वयं ही खत्म हो जाते हैं।
जिंक का किया प्रयोग-
नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जिंक से बना पिकोलिल पोर्फिरिन नैनो-मॉलीक्यूल विकसित किया है, जिसके परिणाम ब्रेस्ट कैंसर के इलाज की उम्मीद जगाते हैं। ब्रेस्ट कैंसर की कोशिकाओं पर किए गए एक परीक्षण में नये मॉलीक्यूल के सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। शोधकर्ताओं ने बताया, ‘ हमारी टीम ने जिंक आयनों को दो अन्य अणुओं (पिकोलीमाइन और पोर्फिरिन) से बने एक सांचे में डालकर नया मॉलीक्यूल विकसित किया है।
नैनो स्ट्रक्टर की संरचना को माइक्रोस्कोपी ने बनाया मजबूत-
राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी के शोधकर्ता और इस अध्ययन के लेखक बेट्सी मेरीदासन ने बताया, ‘जिंक आयनों को पिकोलील-पोर्फिरिन नैनोस्ट्रक्चर में डालने से उसमें ऑक्सीजन आयन की मात्रा बढ़ जाती है। साथ ही इस दौरान उन्हें फोटोडायनामिक गतिविधि भी देखने को मिली।’ उन्होंने कहा कि स्कैनिंग इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोपी और टनलिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी ने इस नैनोस्ट्रक्चर को संरचनात्मक रूप से और मजबूत बनाया है।
फोटोफ्रीन और फोस्कैन से कहीं अच्छा है नया मॉलीक्यूल-
शोधकर्ताओं ने कहा कि फोटो-फिजिकल स्टडी में पाया गया कि नया मॉलीक्यूल पानी में भी घुलनशील है और 59 फीसद रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज उत्पन्न करता है। कुल मिलाकर नया मॉलीक्यूल फोटोफ्रीन और फोस्कैन जैसे परंपरागत फोटोसेंसिटाइजर के मुकाबले कहीं बेहतर सिद्ध हुआ है। ब्रेस्ट, आंतों और गर्भाशय के कैंसर के स्टैंडर्ड बायोलॉजिकल अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि नए मॉलीक्यूल का सबसे ज्यादा प्रभाव ब्रेस्ट कैंसर की कोशिकाओं में देखने को मिला।
पशुओं पर परीक्षण की तैयारी-
शोधकर्ताओं की टीम की नेतृत्व करने वालीं डॉक्टर आशा नायर ने कहा ‘अध्यन के दौरान हमने पाया कि नए मॉलीक्यूल ने कैंसर कोशिका के साइटोप्लाज्मिक क्षेत्र में काफी जल्दी असर करना शुरू कर दिया था। अब हम जल्द ही पशु मॉडल पर मॉलीक्यूल का परीक्षण करने की तैयारी कर रहे हैं। इस अध्ययन के परिणाम एसीएसओमेगा नामक जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
(साभार- दैनिक जागरण)
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